ऑपरेशन सिलक्यारा: 17 दिनों की तनावपूर्ण प्रत्याशा के बाद, मंगलवार शाम को उत्तराखंड के उत्तरकाशी में सिल्क्यारा सुरंग से उनके सफल बचाव की खबर मिलने पर 41 फंसे हुए श्रमिकों के परिवार के सदस्यों के चेहरे पर राहत और खुशी छा गई
राष्ट्रीय लोक संवाद (न्यूज़ डेस्क) : 28 नवंबर 2023
ऑपरेशन सिलक्यारा : 17 दिनों की तनावपूर्ण प्रत्याशा के बाद, मंगलवार शाम को उत्तराखंड के उत्तरकाशी में सिल्क्यारा सुरंग से उनके सफल बचाव की खबर मिलने पर 41 फंसे हुए श्रमिकों के परिवार के सदस्यों के चेहरे पर राहत और खुशी छा गई। यह भावनात्मक क्षण संपूर्ण बचाव प्रयासों की परिणति के रूप में सामने आया जिसने देश का ध्यान खींचा। लंबे समय तक हताशा सहने वाले परिवारों ने बचाव का जश्न मनाया और अपने प्रियजनों को वापस लाने के लिए सरकार को तहे दिल से धन्यवाद दिया।
ऑपरेशन सिलक्यारा के तहत जब आखिरी मजदूर ने टनल से बाहर आकर खुली हवा में सांस ली तो देश और दुनिया में बदलते उत्तराखंड का संदेश भी गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिलक्यारा में 41 श्रमिकों की सकुशल वापसी पर मुख्यमंत्री धामी को फोन कर शुभकामनाएं दीं।
यह बचाव अभियान चुनौतियों से भरा था: धामी
ऑपरेशन सिलक्यारा: सफल सिल्कयारा सुरंग बचाव मिशन पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कहते हैं कि यह बचाव अभियान चुनौतियों से भरा था। हिमालय हमें दृढ़ और अचल बने रहने और आगे बढ़ते रहने के लिए प्रेरित करता है।
#WATCH | On the successful Silkyara tunnel rescue mission, Uttarakhand CM Pushkar Singh Dhami says, "This rescue mission was full of challenges…The Himalayas inspire us to remain firm and unmovable and to keep moving ahead." pic.twitter.com/G0SjWrOlof
— ANI (@ANI) November 29, 2023
हमें अच्छी खबर मिली है: अनिल बेदिया के पिता
सिल्क्यारा सुरंग से सभी 41 श्रमिकों में से बचाए गए झारखंड के मजदूर अनिल बेदिया के पिता कहते हैं कि हां, हमें अच्छी खबर मिली। मैंने उनसे बात की है और उन्होंने कहा कि वह ठीक हैं, लेकिन चेकअप से गुजर रहे हैं। हमारा सरकार से केवल यही अनुरोध था कि उन्हें सुरक्षित बचाया जाए। केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों ने मदद की है।
#WATCH | Uttarkashi (Uttarakhand) tunnel rescue | Rescued worker Anil Bedia's father in Jharkhand says, "Yes, we got the good news. I talked to him, and he said that he was fine, but going through checkups… We had this request only to the government that they get rescued… pic.twitter.com/bLr0zRkbkx
— ANI (@ANI) November 29, 2023
बचाए गए 41 श्रमिकों की मेडिकल जांच
ऑपरेशन सिलक्यारा: उत्तरकाशी-यमनोत्री मार्ग पर स्थित सिल्क्यारा टनल से सफलतापूर्वक बचाए गए 41 श्रमिकों का चिनियालीसौड़ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में मेडिकल चेकअप चल रहा है। सरकारी सूत्रों के अनुसार, स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती सभी श्रमिकों को डॉक्टरों की सलाह के अनुसार भोजन दिया जा रहा है। इससे पहले, मंगलवार शाम को सिल्कयारा सुरंग से 41 श्रमिकों के सफल बचाव के बाद गढ़वाल मंडल के स्वास्थ्य निदेशक डॉ. प्रवीण कुमार ने बचाव अभियान के प्रभारी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि फंसे हुए श्रमिकों के साथ निरंतर संचार से उनके मानसिक स्वास्थ्य स्थिरता को बनाए रखने में मदद मिली।
#WATCH | A rescued worker at Chinyalisaur Community Health Centre shares a video of his fellow workers who were brought out safely from the Silkyara tunnel after 17 long days pic.twitter.com/DRBSwNrQ4o
— ANI (@ANI) November 29, 2023
देश-दुनिया के विशेषज्ञों ने दिन-रात एक कर इस अभियान को मकाम तक पहुंचाया।
17 दिन की कड़ी मशक्कत के बाद 41 मजदूरों को सफलतापूर्वक बाहर निकालने वाला ऑपरेशन सिलक्यारा किसी सुरंग या खदान में फंसे मजदूरों को निकालने वाला देश का सबसे लंबा रेस्क्यू ऑपरेशन बना गया है। इससे पहले वर्ष 1989 में पश्चिमी बंगाल की रानीगंज कोयला खदान से दो दिन चले अभियान के बाद 65 मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकाला गया था।1991 में तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमन ने उन्हें सर्वोत्तम जीवन रक्षा पदक से नवाजा था। उस अभियान में मजदूरों की संख्या सिलक्यारा से ज्यादा थी, लेकिन उन्हें निकालने में समय कम लगा था। सिलक्यारा में 13वां दिन बीतने के बाद मजदूर बाहर निकाले जा सके।
उन्होंने सात फीट ऊंचे और 22 इंच व्यास वाले स्टील कैप्सूल को पानी से भरी खदान में भेजने के लिए नया बोरहॉल बनाने का आइडिया दिया। दो दिन के ऑपरेशन के बाद आखिरकार सभी मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया था। उस अभियान में गिल लोगों को बचाने के लिए खुद एक स्टील कैप्सूल के माध्यम से खदान के भीतर गए थे।
13 नवंबर 1989 को पश्चिम बंगाल के महाबीर कोल्यारी रानीगंज कोयला खदान जलमग्न हो गई थी। इसमें 65 मजदूर फंस गए थे। इनको सुरक्षित बाहर निकालने के लिए खनन इंजीनियर जसवंत गिल के नेतृत्व में टीम बनाई गईं।
कुछ ऐसा ही एक अभियान वर्ष 2006 में हरियाणा के कुरुक्षेत्र के हल्ढेरी गांव में हुआ था, जहां एक पांच साल का बच्चा प्रिंस बोरवेल में गिर गया था। करीब 50 घंटे की कड़ी जद्दोजहद के बाद बचाव दलों ने बच्चे को बाहर निकालने में कामयाबी पाई थी। इस अभियान में बराबर के ही अन्य बोरवेल को तीन फीट व्यास के लोहे के पाइप के माध्यम से जोड़कर बच्चे को बाहर निकाला गया था।
23 जून 2018 को थाईलैंड की थाम लुआंग गुफा में वाइल्ड बोअर्स फुटबॉल टीम गई और बारिश के कारण हुए जलभराव की वजह से भीतर फंस गई। गुफा में लगातार बढ़ रहे पानी के बीच खिलाड़ियों को खोजना बेहद चुनौतीपूर्ण काम था। करीब दो सप्ताह तक चले अभियान में 90 गोताखोर भी लगाए गए। सभी ने मिलकर टीम को बाहर निकाला। इस बचाव अभियान में पूर्व थाईलैंड के नेवी सील समन कुनान को जान गंवानी पड़ी। यह दुनिया के सबसे जटिल रेस्क्यू अभियान में से एक माना जाता है।
पांच अगस्त 2010 को सैन जोस सोने और तांबे की खदान के ढहने से 33 मजदूर उसमें दब गए थे। जमीन के ऊपर से करीब 2000 फीट नीचे फंसे इन मजदूरों से संपर्क करना ही मुश्किल था। 17 दिन की मेहनत के बाद सतह के नीचे एक लाइफलाइन छेद बनाकर फंसे मजदूरों को भोजन, पानी, दवा भेजी जा सकी। 69 दिन के बाद 13 अक्तूबर को सभी मजदूरों को एक-एक करके सुरंग से बाहर निकाला गया।
24 जुलाई 2002 को अमेरिका के पेंसिल्वेनिया के समरसेट काउंटी की क्यूक्रीक माइनिंग इंक खदान में नौ मजदूर फंस गए। इन्हें केवल 22 इंच चौड़ी आयरन रिंग के सहारे 77 घंटे बाद बाहर निकाला जा सका था।